बूँद बूँद याद
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बूँद बूँद याद
टपकती रही रात भर
ज़ेहन में जमीं बर्फ़ से
तन – मन गीला हो गया
सीलन सी भर गयी
कमरे में हर तरफ़
साँसें रुक गईं हैं
तेरे बेरुख़ी के गंध से
. . . . . . . अतुल “कृष्ण”
बूँद बूँद याद
टपकती रही रात भर
ज़ेहन में जमीं बर्फ़ से
तन – मन गीला हो गया
सीलन सी भर गयी
कमरे में हर तरफ़
साँसें रुक गईं हैं
तेरे बेरुख़ी के गंध से
. . . . . . . अतुल “कृष्ण”