Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2021 · 4 min read

*”बुढ़ापे की लाठी”*

“बुढ़ापे की लाठी”
चौरासी लाख योनियों में जन्म मरण का चक्कर चलता ही रहता है एक आत्मा से दूसरी आत्माओं में प्रवेश करने के लिए ये मानव शरीर मिलता है।
जन्म के बाद युवावस्था प्रौढ़ावस्था फिर आखिर में एक न एक दिन बुढ़ापे के चंगुल में फंस जाता है।यही जीवन चक्र प्रकृति का नियम भी है फिर मन में ये डर बैठ जाता है कि बुढापे में न जाने हमारा क्या हाल होगा ….?
बुढापे में हमें कौन सहारा देगा …..? कैसे दिन गुजरेगा …असहनीय पीड़ा ….दुःख दर्द ,निसहाय ,अकेलापन ,तन्हाई काटने को दौड़ेगी न जाने क्या हालात होगी …बस यही सोचते हुए समय व्यतीत करते हैं।
अपने जीवन के कर्तव्यों का पालन करते हुए बच्चों का पालन पोषण पढ़ाई लिखाई उज्ज्वल भविष्य की चिंताओं के बाद शादी विवाह उसके बाद नाती पोते के साथ खेलते हुए इंतजार की घड़ियां गिनते हुए ,अतीत की पन्नों को दोहराते हुए ,कभी कर्मों को या दूसरों को दोषी ठहराते रहते हैं।
रामप्रसाद जी कंपनी में कार्य करते हुए अब साठ साल हो गए सेवा निवृत्त होकर सुबह शाम खेती बाड़ी का काम देखते थे।
उनके सात बेटे व एक लाडली बेटी सभी अच्छे परिवार में सुखी जीवन व्यतीत कर अलग अलग जगहों में रहते हैं। सिर्फ छोटा बेटा बहू व उनके बच्चे गाँव की खेती देखरेख करते सम्हालते और अम्माँ ,बाऊजी की सेवा करते।
सभी बच्चों की पढ़ाई लिखाई पूरी होने के बाद अपने कार्यों में व्यस्त हो गए बड़ा बेटा इंजीनियर बन गया शादी हो गई ,दूसरा बेटा डॉक्टर के पद पर कार्यरत हो गया ,तीसरा अपना खुद का व्यवसाय खोल लिया अच्छा कमाने लगा ,चौथा बेटा पुलिस अधीक्षक बन गया ,पांचवा बेटा गाँव में ही रहकर खेती बाड़ी सम्हालता ,इकलौती बेटी की अच्छे परिवार में शादी कर दी ऐसे सभी बच्चों का घर परिवार सबकी अपनी गृहस्थी बसाने के बाद ही रामप्रसाद जी निश्चिंत हो गए थे।
अब कुछ दिनों बाद रामप्रसाद जी सेवा निवृत्त होकर आराम से जीवन जीना चाहते थे। लेकिन
रामप्रसाद जी की पत्नी भी उम्र के साथ साथ कुछ न कुछ बीमारियों से जूझते रहती कभी बीपी ऊपर नीचे होता शुगर लेवल कम ज्यादा हो जाता इसी दौरान शुगर लेवल ज्यादा बढ़ जाने से रोहिणी को अटैक आ गया था।
शहर के अस्पताल में कुछ दिन भर्ती कराया गया स्थिति ठीक हो गई थी लेकिन चलने फिरने में दिक्कत हो गई थी विलचेयर पर ही बैठी रहती एक तरफ का शरीर पूरी तरह काम करना बंद कर दिया था।
रामप्रसाद जी रोहिणी की सेवा खुद करते थे बाकी बेटा बहू सम्हाल लेते थे।सारी सुख सुविधाओं के बावजूद अपना हर कार्य स्वयं करते और स्वस्थ रहते।
बुढ़ापे में ऐसा लगता जैसे सभी बच्चे आसपास मौजूद रहे और ऐसी स्थिति में बुढ़ापे की लाठी बनकर सहारा दे।बस यही तमन्ना मन में लगाये रखते थे जबकि छोटे बेटा हरदम साथ रहता मदद करता सारी जरूरतों को पूरी करता।
रोहिणी को बस यही आस लगे रहती थी कि मेरे सभी बच्चे साथ में ही रहे उनकी नजरों के सामने दिखते ही रहे परन्तु बच्चों की पढ़ाई व्यवसाय काम धंधा करने वाले भला कैसे सब छोड़कर रह सकते थे।
जब कोई त्यौहार पर्व मनाया जाता तो सभी छह बेटा व बहुएं उनके बच्चे उनकी बेटी सोनल जब सभी घर पर आते तो रामप्रसाद जी रोहिणी बड़े खुश हो जाते थे।
मानो ऐसा लगता था कि सभी बच्चे अब यही हमारे ही पास गाँव में ही रहे।
कभी कभी रोहिणी बच्चों से कहती थी कि “मैंने सात बेटे एक बेटी का पालन पोषण कर इतना बड़ा किया है और आज एक बूढ़ी माँ को सात बेटे पाल नही सकते हैं”
क्या मैं इस विलचेयर पर बैठकर तुम सबके लिए बोझ बन गई हूँ। सेवा करने के लिए वक्त ही नही मिलता है अपने घर इधर उधर का बहाना बना लिया करते हो …..ऐसा कहकर अपने दिल की भड़ास निकाल लेती थी।
अपने उम्र में मैने घर के सारे काम शादी व्याह गृहस्थी बसाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है लेकिन आज मैं अपाहिज की तरह लाचार मजबूर हो गई हूँ और रोते बिलखते आंसू बहाती बच्चे कहते ऐसा नही है माँ हम सभी आपकी बहुत चिंता करते हैं जितनी सेवा बन पड़ती है करते हैं अब आप कहती हो हम सभी एक साथ इकठ्ठे रहे ये संभव नहीं है क्योंकि सब अपनी जिम्मेदारियों में कार्यो में जीवनयापन कर रहे हैं सब छोड़कर यहां कैसे आ सकते हैं।जब कोई त्यौहार व शुभ कार्य होता है तभी हम एक साथ मिलकर आपके पास आ सकते हैं।
दूसरों पर आश्रित रहकर आँखों से टकटकी लगाए बैठी असहनीय पीड़ा को झेल रही थी।
बुढापा एक असहनीय दर्द है जो सभी को झेलना पड़ता है लेकिन समय रहते हुए सेवाभावना स्नेहिल प्रेम रूपी मल्हम लगाने से दर्द कम हो जाता है।
बुढापा को सहर्ष स्वीकार करते हुए रामप्रसाद जी व रोहिणी जी के अंतिम समय में सेवा किये परन्तु सभी कोशिशों के बाबजूद अंततः रोहिणी ने एक दिन साथ छोड़कर सुहागिन का लाल जोड़ा पहनकर सोलह श्रृंगार कर स्वर्गलोक सिधार गमन कर गई थी।
अब अधेड़ उम्र बुढ़ापे में हमसफर संगिनी रोहिणी ने अकेला छोड़ दिया था। अकेलापन महसूस कर रहे थे लेकिन सभी बच्चे नाती पोते का साथ सहारा देते हुए बुढ़ापे की लाठी बने गए हैं …..! ! !

जय श्री राधेय जय श्री कृष्णा ?
शशिकला व्यास✍️

5 Likes · 6 Comments · 1657 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मौसम - दीपक नीलपदम्
मौसम - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
20. सादा
20. सादा
Rajeev Dutta
पनघट और पगडंडी
पनघट और पगडंडी
Punam Pande
“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
DrLakshman Jha Parimal
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
Ranjeet kumar patre
अंग अंग में मारे रमाय गयो
अंग अंग में मारे रमाय गयो
Sonu sugandh
माॅं की कशमकश
माॅं की कशमकश
Harminder Kaur
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
Raju Gajbhiye
आश किरण
आश किरण
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
■ लघु-कविता-
■ लघु-कविता-
*Author प्रणय प्रभात*
'आभार' हिन्दी ग़ज़ल
'आभार' हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*तुम न आये*
*तुम न आये*
Kavita Chouhan
दिया एक जलाए
दिया एक जलाए
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रिश्तों को निभा
रिश्तों को निभा
Dr fauzia Naseem shad
वृक्षारोपण का अर्थ केवल पौधे को रोपित करना ही नहीं बल्कि उसक
वृक्षारोपण का अर्थ केवल पौधे को रोपित करना ही नहीं बल्कि उसक
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
जालोर के वीर वीरमदेव
जालोर के वीर वीरमदेव
Shankar N aanjna
3359.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3359.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
Neelam Sharma
భారత దేశ వీరుల్లారా
భారత దేశ వీరుల్లారా
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
माँ मुझे विश्राम दे
माँ मुझे विश्राम दे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
संस्कारों के बीज
संस्कारों के बीज
Dr. Pradeep Kumar Sharma
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
gurudeenverma198
कोई मंत्री बन गया , डिब्बा कोई गोल ( कुंडलिया )
कोई मंत्री बन गया , डिब्बा कोई गोल ( कुंडलिया )
Ravi Prakash
दोस्ती
दोस्ती
Neeraj Agarwal
मैने प्रेम,मौहब्बत,नफरत और अदावत की ग़ज़ल लिखी, कुछ आशार लिखे
मैने प्रेम,मौहब्बत,नफरत और अदावत की ग़ज़ल लिखी, कुछ आशार लिखे
Bodhisatva kastooriya
युद्ध नहीं अब शांति चाहिए
युद्ध नहीं अब शांति चाहिए
लक्ष्मी सिंह
बाल कविता: तितली
बाल कविता: तितली
Rajesh Kumar Arjun
अंदाज़े शायरी
अंदाज़े शायरी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
🙏 गुरु चरणों की धूल 🙏
🙏 गुरु चरणों की धूल 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
रास्ते फूँक -फूँककर चलता  है
रास्ते फूँक -फूँककर चलता है
Anil Mishra Prahari
Loading...