बुला रहे है गाँव मेरे…
बुला रहे है गाँव मेरे ,
छोड़ कर शहर तेरे ,
गाँव में हैं घर मेरा ,
प्रेम स्नेह का हैं बसेरा,
धूल धुँआ हैं कोसो दूर ,
माटी पर हैं मुझे गरूर,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़कर शहर तेरे,
इंतजार करती हैं गलियाँ,
खिली हुई फूलों की कलियाँ,
बलखाती पगडण्डी राहें,
बहती निर्मल पवन हमें चाहे,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
पनघट पर है पनियारी,
देखो पाठशाला यह न्यारी,
सुख दुःख की बातें सारी,
नित नित रूप में है जारी,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
मिलकर मनाते है त्यौहार,
गाँव हमारा है एक परिवार,
हर संस्कृति खूब झलकती,
बात न कोई कभी खटकती,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
उड़ती आए जब धूल,
लगे स्वागत में जैसे फूल,
देख देख सावन के झूले,
खुशियों से मन यह डोले,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
पसीने से तरबतर काया,
मेहनत से मिलती माया,
खेत होते फिर हरे हरे,
खलिहान अन्न से भरे भरे,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
दूध की बहती धारा,
अटूट यहाँ भाई चारा,
अतिथि देव समान ,
गाँव वासी करते सम्मान ,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,
सारा गाँव है परिजन,
कोई पराया नही जन,
दिल में बसा गाँव हमारा,
सदियों से है नाता गहरा,
बुला रहे है गाँव मेरे,
छोड़ कर शहर तेरे,