बुलावा
बुलावा
मौत ने इक दिन कहा सपने में आ कर,
मैं तुझे आई हूँ लेने, सामना कर|
काम सारे पूरे कर ले, जो बचे हों,
अन्यथा ले जांयगे, तुझको उठा कर|
जिस्म ने छोड़ा पसीना, ढेर सारा,
फिर भी घूरा मौत को, आँखें नचा कर|
धौंस रुतबे की, चमक पैसे की फेंकी,
जाल फेंका, कीमती गहने दिखा कर|
पेशकश गाड़ी की, झांसा बंगले का,
भी दिया औरत समझ कर, पास जा कर|
मौत भी अपनी तरह की, एक ही थी,
न डरी, सहमी न बोली, ताव खा कर|
प्यार से सुनती रही, बकवास मेरी,
हंस के बोली, पीठ मेरी थपथपा कर|
मौत बिकने इस तरह, जिस दिन लगेगी,
सृष्टि को धनवान, रख देंगे जला कर|
टूटती दिखने लगी जब, मेरी आशा,
गिड़गिड़ाया, भीख दे, देवी दया कर|
अबतलक देखा ही क्या, पाया ही क्या है?
और कुछ दिन लूँ मैं जी, नेहा लगा कर|
ठीक है लेजा तूं मौक़ा, चार दिन का,
पाप कितने कर चुका है, यह बता कर|
और कुछ ज्यादा समय, यदि चाहिए तो,
बस गिना जा, काम अच्छे कुल मिला कर|
हो गया तैयार, चलने मौत के संग,
मौत के कदमों में लिपटा, लड़खड़ा कर||