बुरे वक्त की स्याह लकीरे
कट जाएंगी धीरे धीरे
बुरे वक्त की स्याह लकीरे
अभी डगमगाई कश्ती है
सन्नाटे मे सब बस्ती है ।
घबराई जनता सारी है
घर में रहना लाचारी है।
जीत लेने को पैबंद हैं
इसलिए घरों में बंद है ।
संयम ही समझदारी है ।
दुश्मन आज पड़ा भारी है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र