बुरे फँसे हम(हास्य गीत)
बुरे फँसे हम(हास्य गीत)
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बुरे फँसे हम ठीक समय पर, समारोह में जाकर
(1)
जब हम पहुॅंचे उसी समय कुर्सियाँ उतरती पाईं
धूल उड़ाती मधुर झाड़ुएँ चलती – फिरती आईं
कुछ हलवाई ले कढ़ाइयाँ उसी समय आ धमके
आयोजक जी जरा-खुले दरवाजे में से चमके
लिपटे हुए तौलिया में थे, शायद सुरती खाकर
(2)
हमें देखकर आयोजक जी बोले “कैसे आए ?”
हम बोले श्रीमान ! निमंत्रण स्वयं आप थे लाए
प्रीतिभोज के आयोजन को क्या अब भूल गए हैं
आयोजन में निपट अनाड़ी लगता आप नए हैं
नहीं व्यवस्था तनिक आपने, की है हमें बुलाकर
(3)
आयोजक ने कहा सिर्फ दो घंटे रुकना होगा
ठीक समय पर कब कुछ होता ,थोड़ा झुकना होगा
सब्जी-पूड़ी सब कुछ ताजा भोजन यहीं बनेगा
जरा देर में गर्म कढ़ाही होगी , शगुन मनेगा
आप बैठिए ! फुरसत में हम, आए जरा नहाकर
बुरे फँसे हम ठीक समय पर, समारोह में जाकर
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रचयिता रवि प्रकाश, रामपुर