*बुरे फँसे सहायता लेकर 【हास्य व्यंग्य】*
बुरे फँसे सहायता लेकर 【हास्य व्यंग्य】
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किसी से सहायता लेना संसार में सबसे बुरा काम है । शुरू में तो यह लगता है कि अगर कोई हमारी सहायता कर रहा है और हम उससे सहायता ले लेते हैं तो इसमें बुराई कुछ नहीं है । दूसरे को परोपकार करने का अवसर हम प्रदान करते हैं । उसको समाज सेवा का अवसर मिल जाता है और हमारी समस्या का समाधान हो जाता है । लेकिन बात इतनी सीधी और सरल नहीं होती।
सहायता करने वाला अनेक बार पीछे पड़ जाता है । हटने का नाम नहीं लेता । सहायता एक लंबी प्रक्रिया बन जाती है । कई लोग बिस्कुट का एक पैकेट या एक फल या चार रोटी का पैकेट किसी को सहायता के तौर पर देने आते हैं और अगले दिन व्यक्ति जब अखबारों में अपना फोटो प्रकाशित हुआ देखता है तो उसकी समझ में नहीं आता कि वह अखबार छुपाए या अखबार में छपा हुआ अपना चेहरा छुपाए ? अखबार छुपाने से नहीं छुप सकता । पूरे शहर में बँट चुका होता है । व्यक्ति को मजबूर होकर अपना चेहरा कुछ और ज्यादा छुपाना पड़ता है । कोई पहचान न ले !
आदमी की दुर्गति होकर रह जाती है। जिस गली-मोहल्ले से निकल गया ,छोटे-छोटे बच्चे भी उसके चेहरे का मिलान अखबार में छपे हुए फोटो से कर बैठते हैं और चिल्ला कर कहते हैं “देखो ! वह जा रहा है सहायता प्राप्त करने वाला व्यक्ति “।
जिसने सहायता की है उसका तो उद्देश्य ही यही होता है कि सब लोग जानें कि दाता ने एक अदद केला किसी को दान में दिया है । उसका उद्देश्य पूरा हो गया । जिसने मदद ले ली ,वह फँस गया । एक तरह से ओखली में सिर दे दिया ।अब मूसलों से क्या घबराना ! जो सहायता देता है वह जब तक जीवित रहता है उस व्यक्ति की ओर इशारा करके सबको बताता रहता है कि देखो ! यह असहाय आदमी था जिसको हमने सहायता करके अच्छा बनाया है ।अनेक बार व्यक्ति अपने चार रिश्तेदारों को अथवा जान-पहचान के लोगों को साथ में लेकर सहायता प्राप्त करने वाले के घर आ धमकता है । सबके साथ बेचारे सहायता प्राप्त व्यक्ति का एक ग्रुप-फोटो हर छठे महीने किसी न किसी बहाने सहायता देने वाला खिंचवाता रहता है । उसे तो एक ही काम है कि सबको बताना कि देखो हमने अमुक व्यक्ति की सहायता की है । जिस तरह गन्ने का रस निकालने वाला गन्ने से एक बार रस निकालने के बाद संतुष्ट नहीं होता। दूसरी ,तीसरी और चौथी बार भी रस निकाल लेता है ,ठीक उसी प्रकार सहायता करने वाला व्यक्ति सहायता लेने वाले व्यक्ति की बेइज्जती केवल एक बार करके चुप नहीं बैठता । बार-बार बेइज्जती की पुनरावृत्ति होती रहती है।
अशासकीय संस्थाओं द्वारा सरकार से सहायता लेना कुछ लोग अच्छा मानते हैं । मगर जिन्हें अनुभव है ,वह जानते हैं कि सरकार से सहायता लेना अपनी स्वतंत्रता खोने के समान है । सरकार सहायता देने के बाद केवल प्रचार नहीं करती ,वह जिसको सहायता देती है उस पर पूरी तरह अपना कब्जा जमा लेती है । एक बार जिसने सरकार से सहायता ले ली ,वह फिर अपनी मर्जी से न सो सकता है न जग सकता है । कुछ खाने से पहले सरकार से पूछना पड़ता है । कौन से कपड़े पहने जाएं, किस रंग के पहने जाएं ,फिर यह सब सरकार तय करती है । सरकारी अफसर उस व्यक्ति का नाम सहायता-प्राप्त व्यक्तियों की सूची में दर्ज कर लेते हैं । जिन्हें सरकार सहायता करती है ,ऐसे व्यक्तियों के ऊपर निगरानी रखने के लिए सरकार का एक अलग निगरानी विभाग काम करता है। जो इस बात की जांच करता रहता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी व्यक्ति ने सरकार से सहायता भी ले ली हो और फिर भी अपनी मर्जी से जीवन व्यतीत कर रहा हो। हर सप्ताह उसके पास एक पत्र आता है जिसमें यह बताना पड़ता है कि कहीं आप सरकार की सहायता लेने के बाद भी अपनी मर्जी से उल्टे-सीधे तरीके से तो साँसे नहीं ले रहे हैं ? सरकार के तमाम तरह के नियम ,उपनियम, विनियम ,अधिनियम उसके ऊपर लागू हो जाते हैं । उसे हर प्रकार की चिट्ठियों के जवाब देने पड़ते हैं ।
कई बार व्यक्ति सोचता है कि इससे तो बिना सरकार की सहायता लिए हम अच्छे थे। लेकिन सरकार उसे ऐसा भी सोचने का अवसर अब नहीं देती । वह कहती है कि तुम्हारी किस बात में अच्छाई है ,यह हमें सोचना है । इस मामले में भी हम तुम्हारी सहायता करेंगे । तुम्हारे लिए जो अच्छा हो सकता है ,जब वह हम सोच रहे हैं तो तुम सोचने की तकलीफ क्यों उठाते हो ? बस जैसा सरकार कहे ,वैसा करते चले जाओ। अब तुम्हारे जीवन में सिवाय सरकार की सहायता का उपयोग करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचा है ।
आदमी उस मनहूस घड़ी को याद करता है जब उसने किसी व्यक्ति अथवा सरकार से सहायता ली होती है । मगर अब कुछ नहीं हो सकता । एक बार सहायता ले चुकने के बाद व्यक्ति असहाय हो जाता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451