बुरी सोच
यहाँ पर एक दूसरे को
गिराने का रिवाज है
जी हाँ यही हमारा
वर्षों का राज़ है ,
कोई मरहम नही लगाता चोट पर अब
इस पर नमक छिड़कने को
तैयार हैं सब ,
कहते हैं तुम्हारे ” उफ ” से
मतलब नही हमें कोई
पर तुम्हारी ” हँसी ” से
कैसे रहें दूर भाई ?
जब हम इस ” हँसी ” को
” उफ ” में बदल देगें
तब तुम्हें पहचानने से
इंकार कर देगें ,
क्योंकि …..
जब चारो तरफ गूंजेगा ” उफ ”
तब देखियेगा कैसे आती है ” खुशी ”
हमारी तरफ बदल कर अपना रुख ,
बस अपनी खुशी के लिए
दूसरों के ” उफ ” सहते हैं
इसी में संतुष्ट हैं
इसी के लिए जीते हैं
इसी के लिए मरते हैं ।
सवरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 19/10/87 )