बुरी आदत – बाल मनोविज्ञान
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❆ लघुकथा सृजन –
❆ विषय – बुरी आदत
❆ तिथि – 06 दिसम्बर 2018
❆ वार – बुधवार
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▼ विषय अनुसार लघुकथा
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बाल मनोविज्ञान
अभिषेक अपने उच्च प्रशासनिक माता-पिता की इकलौती संतान था। उच्चकुलीन परिवार में जन्म साथ ही माता पिता दोनों उच्च प्रशासनिक अधिकारी घर में सभी प्रकार कि अत्युत्तम व्यवस्था ठाठबाट अनेक नौकर चाकर सभी सुविधाएं।
नहीं था तो सिर्फ इतना कि माँ-बाप का उसके लिए समय ?
आया एवं सेवकों के भरोसे उसका कोमल बाल मन क्या चाहता है इसका उन्हें अपने अतिव्यस्त दिनचर्चा कार्यालय के कार्याधिक्य ऊपर की आय शाम की लगभग रोजाना होने वाली पार्टियों के कारण कभी समय नहीं रहा?
परिणाम प्यार पाने की भूख ने पहले उसे जिद्दी फिर धीरे-धीरे हुक्का कैफे से कब वह सिगरेट.. फिर चरस.. आदि लेने लगा.. पता ही नहीं चला।
वो तो एक दिन उसी संभ्रांत कालोनी के वर्मा जी जो स्वयं एक उच्चधिकारी थे का आगमन हुआ तथा सभ्यतापूर्वक उन्होंने सिंह दम्पति को (चतुराई से झूँठ कह कर)बताया कि मेरा बेटा विनय सही रास्ते नहीं चल रहा है, चूंकि आपके बच्चे का मित्र है, पड़ौसी होने के नाते मेरा फ़र्ज़ है आपको आगाह करुं अपने बेटे को उसकी कुसंगति से बचा लें ? फिर संक्षिप्त में सार कि बात बतला रुख्सत हुए।
चौंककर सिंह दम्पत्ति सब समझ अपने मनोचिकित्सक मित्र से उसी शाम मिले.. बच्चे को परामर्श हेतु कुछ लगातार सुझाव एवं दवाईयों के बावजूद नशामुक्ति केंद्र का भी आश्रय लेना पड़ा ताकि बाद में पुनः कमजोर आत्मविश्वास के या बाँयटे आदि आने जैसी जटिलताओं से बचाया जा सके… योग व्यायाम खान-पान सभी का दम्पत्तिद्वय पूरा ध्यान रख किशौरवय बालक का भविष्य समय रहते ही सुधार पाये।
मनोचिकित्सक ओझा जी ने सिंह साब को बतलाया कि अभिवावकों का बच्चों के लिए सुविधाओं से अधिक समय देना स्नेह एवं अपनत्व के साथ कहनें से अधिक हमारे आचरण का विषेश असर होता है नहीं तो किशोरावस्था में हठी,विरोधी स्वभाव के चलते अतिमहत्वाकांक्षा से बालक राह भटककर अवसाद में आकर नशे का सहारा ले हताशा दूर करने का उपाय खोजने लगता है। वातावरण परिस्थिति सोच शिक्षा आदि व्यक्तिगत विचारधारा का निर्माण करते हैं दृढ़विचारधारा अनुकूलता एवं कमजोर विचारधारा प्रतिकूल प्रभाव ड़ालती है:- एक बालक बड़ा होकर सिर्फ इसलिए शराबी हो जाता है क्योंकि उसका बाप #शराबी था; जबकि दूसरा सिर्फ इसलिए शराब वह अन्य व्यसनों से दूर रहता है कि उसका बाप #शराबी था ?
.इति।
✍ अजय कुमार पारीक ‘अकिंचन’
☛ जयपुर (राजस्थान)
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