बुरा किसी को नहीं समझना
बुरा किसी को नहीं समझना
बुरा किसी को नहीं कहेंगे।
बुरी बात भी सदा सहेंगे ।।
सहज करेंगे नित रखवाली।
पी कर मादक मोहक प्याली।।
सहनशील बनकर जीना है।
मधुकर बनकर मधु पीना है।।
सेवक बनकर जीने का मन।
जग को सदा समर्पित य़ह तन।।
गली भी अब उत्तम लगती।
ईर्ष्या नित पुरुषोत्तम दिखती।।
मन सुधरेगा हृदय खिलेगा।
सुख का सागर सहज मिलेगा।।
मित्र हमेशा स्वागतेय हैं।
उर में बैठे प्रिय अजेय हैं।
मन अति भावुक आज हुआ है।
लगता असली काज हुआ है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।