बुन्देली ग़ज़ल
मौन की वे तौ ठाने बैठे,
जइसै भौत चिमाने बैठे!
बात का कै दइ हमनैं सच्ची,
दुश्मन हमखौं माने बैठे!
वे ख़िलाफ़ हमरे बतियावे,
तर्क-कुतर्क जुटाने बैठे!
जिनकी लुटिया डूबी ख़ुद,वे-
हमरी नाव डुबाने बैठे!
‘सरस’ काय खौं करे चकल्लस,
जब तुम सही ठिकाने बैठे!
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)