बुद्ध बुद्धत्व कहलाते है।
तुम शीश झुकाने जाते हो,
वो मित्र तुम्हें बुलाते है,
जग की बात बताते है,
विज्ञान की राह दिखाते है,
परम ज्ञान वह रखने वाले,
बुद्ध बुद्धत्व कहलाते है।
भिक्षाटन करने वाले है,
करुणा और प्रेम जताते है,
अहं को वह गिरा कर के,
अजातशत्रु का अहम् मिटाते है,
मित्रवत् व्यवहार सिखाते है,
बुद्ध बुद्धत्व कहलाते है।
सरण अपनी देकर वह,
सत्य वचन सुनाते है,
दुःख जीवन में क्या है यह,
उस दुःख से तुम्हे बचाते है,
मैत्रेय बुद्ध वह बन जाते है,
बुद्ध बुद्धत्व कहलाते है।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।