बुद्धी, जीवन, संतुष्ट नही l
बुद्धी, जीवन, संतुष्ट नही l
क्यों कि, ये ह्रदय संतुष्ट नही ll
जीवन सहज स्पष्टता, क्या है l
बस इतना सा ही, स्पष्ट नहीं ll
पर्वत पाले, खाई खोदे l
बुद्धिजीवी, बिन कष्ट नही ll
भीतर बाहर, आतंक भरा l
कौन कहे, पालक भ्रष्ट नही ll
लाखों जंग, अरबों मारे l
कोन कहे, मानव दुष्ट नहीं ll
प्रीत दान, कभी कपट नहीं l
न कह, ये प्यास उत्कृष्ट नहीं ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न