बुदबुद छंद “बसंत पंचमी”
सुखद बसंत पंचमी।
पतझड़ शुष्कता थमी।।
सब फिर से हरा-भरा।
महक उठी वसुंधरा।।
विटप नवीन पर्ण में।
कुसुम अनेक वर्ण में।।
खिल कर झूमने लगे।
यह लख भाग्य ही जगे।।
कुहुक सुनाय कोयली।
गरजत मन्द बादली।।
भ्रमर-गुँजार छा रही।
सरगम धार सी बही।।
शुभ ऋतुराज आ गया।
अनुपम चाव छा गया।।
कलरव दिग्दिगंत में।
मुदित सभी बसंत में।।
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लक्षण छंद:-
“नजर” सु-वर्ण नौ रखें।
‘बुदबुद’ छंद को चखें।।
“नजर” = नगण, जगण, रगण
(111 121 212)
9 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल नमन,
तिनसुकिया