बुतों का शहर
कविता
बुतों का शहर
*अनिल शूर आज़ाद
हर तरह
और/हर रंग के
बुतों का/एक विशाल
अजायबघर है/यह शहर
हर
अच्छी एवं बुरी/घटना के
राजदार हैं/यहां बुत
पर..
बुत आखिर
एक बुत ही
होता है
इसलिए/प्रायः
चुप ही/रहते हैं
यहां लोग।
(रचनाकाल : वर्ष 1986)