बुढापे मे लडाई (जीवन की सच्चाई)
दिनांक 28/4/19
लघुकथा
“सुनो जी, आगरा का पेठा ले लो आपको अच्छा लगता है ।”
पत्नी ने पति से कहा । लेकिन उसने मना
कर दिया । तभी गरमागरम समोसा लिए , एक बेचने वाला खिडकी के पास आया तब पति ने पत्नी से कहा :
” समोसा खा ले , ले लूँ दो ठो ”
लेकिन अब पत्नी ने मना कर दिया ।
मैं दिल्ली से भोपाल आ रहा था । मेरी सीट के सामने ये वृद्ध दम्पत्ति बैठे थे और मैंने महसूस किया पूरे रास्ते पत्नी, पति से मीठा खाने का कहती और पति मना कर देता फिर पति , पत्नी को मिर्च मसाले की चीज खाने को कहता और वह मना कर देती ।
इसके बाद पत्नी ने सब्जी रोटी निकाली और दोनों ने साथ साथ खाई ।
फिर उनमें जब स्टेशन पर कोई कुछ बेचने आता तब मीठा – नमकीन खाने , न खाने के लिए बहस
होती रही ।
इस बीच उस दाम्पत्ति में से पति सीट से उठ कर बाहर गया तब मैंने अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए कहा :
” माता जी आप अपने पति को मीठी चीज खाने के लिए क्यो बार बार कहती है , जबकि वह मना कर देते है । तब उन्होंने कहा :
” बेटा बूढ़ा और बच्चा एक सा होते है , इनको शुगर की बीमारी है , पहले जब मैं मीठा खाने के लिए मना करती थी तब यह खाने के लिए ज़िद करते थे और खाने के बाद बीमार पड़ जाते थे । अब मैंने उल्टा रास्ता अपनाया, अब मैं मीठा खाने को कहती हूँ तो ये खुद मना कर देते हैं ।”
इसके बाद थोडी देर बाद जब पत्नी उठ कर गयी तब मैंने पति से भी यही बात पूछी तब उन्होंने कहा :
” बेटा इसे हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्राल है पहले जब मैं नमक मिर्च तेल वाली चीजें खाने को मना करता था तब ये लडती थी , लेकिन अब कहता हूँ तो मना कर देती है और यही मैं चाहता था ।”
तब तक भोपाल आ गया और फिर सामान उठाने पर पत्नी कहती ज्यादा सामान मैं उठाऊंगी तो पति कहता मैं उठाऊंगा । इस तरह दोनों लड़ते झगड़ते प्लेटफार्म से बाहर आ गये ।
मैंने महसूस किया बुढापे मे लडाई एक दूसरे का , ध्यान रखने , आराम देने के लिए होती है , जिसमें स्वार्थ नहीं बस समर्पण होता है ।
शायद परमेश्वर ने बुढापा , जीवन के इन्हीं हसीन पल के लिए बनाया है ।
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल