बुढापे का दुख
दो दोहे
श्रमिक बना सुत ने किया, कितना आज तटस्थ।
हाय बुढापे में हुआ, सतनय पिता दुखस्थ।
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बुरा रोग है दीनता, यमघट तक है संग।
क्या युवक क्या वृध्दजन, कर दे ढीले अंग।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)