बुढ़ापे की सौगात
विषय- “बुढ़ापे की सौगात”
है बुढ़ापे का तकाज़ा दिल लगाना चाहिए।
धूल दर्पण पर जमीं उसको हटाना चाहिए।
भूल पाते हम नहीं गुज़रा ज़माना चाहकर
हर किसीको अब यहाँ कोई दिवाना चाहिए।
देख फिर रहमत मयस्सर आज इतनी कर ख़ुदा!
वक्त जैसा भी हो लेकिन मुस्कुराना चाहिए।
साल सैंतिस भी मिले छोटा मुझे तो क्या ग़िला
प्यार की प्यासी नज़र को आज़माना चाहिए।
ज़ुल्फ़ से बूँदें गिरीं तो इक मुसाफ़िर हँस दिया
दूसरे दिन छेड़ने को इक बहाना चाहिए।
लोग दिल को थामकर देखा करें जब रास्ता
इक भरोसा यार के दिल में जगाना चाहिए।
दिल्लगी में दिल अगर ये खो गया तो क्या हुआ
एक मौसम हम बुज़ुर्गों को सुहाना चाहिए।
इश्क शर्तों पे किया जाता नहीं ‘रजनी’ कभी
ता क़यामत रस्म उल्फ़त को निभाना चाहिए।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज,वाराणसी।
संपादिका-साहित्य धरोहर