बुढ़ापे का दर्द
आज अपने ही घर से,बे घर हो गए।
जो कभी अपने थे,वे पराए हो गए।।
अपना घर होते हुए,वृद्धाश्रम चले गए।
कोई नही पूछता,वे वृद्ध कहां चले गए।।
जो जिगर के टुकड़े थे,वे दुश्मन हो गए।
पता नही वे आज अब ऐसे क्यों हो गए।।
कभी हम मजबूत थे,आज मजबूर हो गए।
कभी असरदार थे,आज बेअसर हो गए।।
सुनता नही कोई हमारी सब बहरे हो गए।
जुबान होते हुए हमारे,पर हम गूंगे हो गए।।
हवा ऐसी कौन सी चली,सब बेदर्द हो गए।
जिनके हम हमदर्द थे,आज वे बेदर्द हो गए।।
ये सबकी बीती नही,अपनी बीती लिख गए।
भावना में बहकर,रस्तोगी सच्चाई लिख गए।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम