बुढ़ापा
शीर्षक – बुढ़ापा
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हम सभी जानते हैं कि जीवन में जन्म लेकर बचपन से जवानी और अधेड़ उम्र के बाद बुढ़ापा आता हैं हम सभी जन्म से लेकर सभी रिश्तों और रीति रिवाजों के साथ साथ अपने जन्म देने वाले माता-पिता के आधार और आशाओं के साथ खेलते और कुदरत के रंग एक सच होते हैं। हम सभी जन्म लेकर बहुत सी ईश्वरीय वरदान और मन्नतों के साथ-साथ घर परिवार समाज और धार्मिक पूजा पाठ कराते हैं। और जन्म के साथ-साथ हम सभी अपने धर्म और संस्कृति को सहयोग और समझते हैं। बस समय पंख लगा कर चलते चलते हम सभी जन्म से बचपन की ओर बढ़ रहे हैं।
बचपन की शरारतें और अठखेलियां हमें हमारे परिवार और समाज में रिश्ते नाते समझ बताते हैं। और फिर हम बचपन से स्कूल जाते हैं या अपनी पारिवारिक आर्थिक स्थिति के साथ-साथ जीवन के रंगमंच पर किरदार निभाते हैं। और यही बचपन भी हमें बहुत कुछ सिखाता हैं। और हम सभी इस बचपन के साथ-साथ जीवन में नादानियां भी कर देते हैं। और जीवन जीने के पहलू हमें घर परिवार समाज और हम सभी खुद भी समझने लगते हैं। और यही से हमारे शरीर और मन का बदलाव शुरू होता हैं।
हम सभी बचपन के स्कूल से जवानी के काँलेज में कदम रख देते हैं। और जवां उमंग और हम जीवन के सच को स्वीकार करने की सोच और राह पर चलते हैं। जहां हमें हमारी जिंदगी की राह और दोस्त की सोच रखते हैं। और हम सभी अपने जीवन को जीने का तरीका और सोचते हैं। बस जवानी में ही तो हम सभी अपने अपने स्वार्थ रखते हैं। और यही से शुरू होता हैं। हमारे पराए और अपने विचारों के साथ जीने की चाहत और सोच अच्छी और बुरी बनती हैं। और हम जीवन के सच में बहुत कुछ समझते हैं।
जवानी की दहलीज से ही सही हमारे जीवन के रंग तरंग और तौर तरीके शुरू होते हैं। यही जवानी से अधेड़ उम्र का सफर ही तो हम सभी अपने अपने जीवन की सोच रखते हैं। बस जवानी से अधेड़ उम्र का बीच ही जीवन का सच और महत्व रखता है। हम सभी बस जवानी और बुढ़ापे के मध्य ही जीवन का एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। क्योंकि आज आधुनिक परिवेश में हम सभी जानते हैं। और समाज को एक साथ पहचानते हैं। और यही से हम अपनी सोच और व्यवहार कुशलता के साथ जीवन समझते हैं। और समय समय बीतता है। इसी जवानी और अधेड़ उम्र के बीच ही सभी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। और हम सभी इस उम्र में जीवन जीते और कुदरत के ईश्वर को पूजते हैं। और परिवार परिस्थितियां को सहयोग करते हुए । परिवार की स्थिति से हम जीवन के साथ साथ सुख दुःख का समय भी जीते हैं। और ऐसे ही जीवन जीते हुए हम सभी अपने जीवन के अधेड़ उम्र को पार करते हैं।
हम सभी अपने बुढ़ापे में पहुंचते हैं बस यही बुढ़ापा हमारी जिंदगी और कहानी का सच रहता हैं। और परिवार का इम्तिहान या परीक्षा का परिणाम मिलता हैं। और बुढ़ापा ही तो हमारे जीवन का एक सच और महत्वपूर्ण भूमिका का सच समझता है। बस हम यही बुढ़ापा चैन से जीने की सोच रखते हैं। और वही बच्चे जिन्हें हम आशाओं और मन्नतों से परिवारिश करते हैं वो अब हमें बोझ समझते हैं। क्योंकि आज आधुनिक समय में हम सभी भूल जाते हैं। कि हम सभी को एक ही राह से गुजरना हैं। और हम अपने अहम और जवानी में अपने जीवन रुपी अनमोल खजाने माता पिता को भूल जाते हैं। बस वृद्धा आश्रम और हम सभी जन्म से लेकर जवानी और अधेड़ उम्र में भी अपने जन्मदाता को बोझ समझते हैं। क्यों आज भी मेरी कहानी बुढ़ापा अधूरी है। जिस दिन हम सभी अपने जीवन या जन्म देने वाली वाले माता-पिता को सहयोग दे ने लगें। तब शायद मेरी कहानी बुढ़ापा ही नहीं रहेगी। और मैं शायद उस दिन बहुत सही कहानी का सार लिख कर बुढ़ापा पूरा समापन करुंगा। बस यह कहानी बुढ़ापा आपकी मेरी हम सभी मानव समाज को संदेश ले रही हैं। हम सभी बच्चों से आशाएं रखते हैं।कि हमारा बुढ़ापा सही और कमाल से जिंदगी का सारांश बने।
आओ हम सभी सोचते हैं और बुढ़ापा आने से पहले सुकून की राह बनाते हैं। और बुढ़ापा चैन से जीते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र