बुढ़ापा
?बुढ़ापा ?
बुढ़ापा
न है कोई बीमारी
फिर क्यूँ इससे घबराती दुनिया
फिर क्यूँ इससे हारी
सृष्टि के संचालन का यह
है अंतिम पड़ाव
यह माना कि इसमें गति नहीं है एक ठहराव
एक नवोद्भिद से शनैः-शनैः बना तू वटवृक्ष
किया अहर्निश निज उत्तरदायित्वों का
सतत् निर्वहन तूने आद्योपांत
अब न सुदृढ़ काया
और न ही हाथ है माया
संतति का व्यवहार हुआ यदि विबोधपूर्ण
तो मान लेना कि
तुम्हारा दिया संस्कार काम आया
वर्ना है यह अपने प्रारब्ध का सरमाया
श्वास है जीवन की आस
इस पड़ाव पर न हों निराश
सैर, व्यायाम, पूजा, भजन, भोजन और आराम
अब आए हैं अपने भी दिन निज तन मन पर दे दो ध्यान
सुपाच्य भोजन शांत जीवन
स्व रुचि को दे दो परवान
करो कल्याण जो हो सके इस वपु से
निज अनुभवों का कर दो दान
तुम मुमुक्षु सम रहो धीर
नहीं बुढ़ापा है अभिशाप।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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