बुढ़ापा हूँ मैं
बुढ़ापा हूँ मैं
बेरुखी सी जिंदगानी
ना कोई उमंग है बुढ़ापा हूँ मैं
हूँ हकीकत मैं पुरानी
ना कोई तरंग है बुढ़ापा हूँ मैं
कहने लगे सब मैं सठिया गया हूँ
चलना भी मुश्किल गठिया गया हूँ
यही मेरी निशानी
हर चीज बेरंग है बुढ़ापा हूँ मैं
अपने भी सब नजरें चुराते हैं यूँ
बीते दिनों को भी भूल जाते हैं यूँ
यही मेरी कहानी
जो बड़ी बेढ़ंग है बुढ़ापा हूँ मैं
“V9द” ये जीवन की सच्चाई है
सामने है मगर ना समझ आई है
दो पल की जवानी
इसी से ये जंग है बुढ़ापा हूँ मैं
V9द चौहान