बुढ़ापा से मुहब्बत बा जरूरी
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बुढ़ापा से मुहब्बत बा जरुरी।
बचा लऽ ई विरासत बा जरूरी।
शजर जड़ से जुदा हो के रही ना,
समझ लऽ आज निस्बत बा जरूरी। (निसबत-लगाव)
पिता तरुवर ह बरगद के समझ लऽ,
कइल करिहऽ हिफाजत बा जरूरी।
नयन से लोर ना आई कबो भी,
पिता जइसन अमानत बा जरूरी।
रहे आशीष जीवन भर पिता के,
सुनऽ ऐ ‘सूर्य’ किस्मत बा जरूरी
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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