बुड्ढा पीपल।
मेरे गांव के बाहर एक पहरेदार खड़ा है,
हर मौसम, हर समय बेपरवाह अडा है,
कब से है न जानता कोई,
शायद इसके उम्र का बचा न कोई,
हर शक्स इसे करीब से जानता है,
बचपन से जवानी इसके नीचे ही बिता मानता है,
गिल्ली डंडा, ताश कबड्डी हर खेल यहीं पर होता है,
थककर राहगीर इसके ठंडी छांव के नीचे सोता है,
हर इतवार शाम चार बजे चौपाल यहीं पर लगती है,
सबकी शादियों की बारात यही से सजती है,
मोटी डालियां घने पत्ते यही इसकी पहचान है,
बुड्ढा पीपल बुड्ढा है पर अपनी गांव की शान है!!
Ranjeet…..