बुजुर्गों की आंखों में दिखता है, जीवन भ्रम है..
मृत्यु जीवन का तथ्यात्मक सत्य है अचानक आने वाला सत्य है मगर बुढापा मृत्यु से पहले का जीवन सत्य है, जो जीवन के भ्रम को दर्शाता है, और पूछता है कि उन्होंने यह सब क्यों किया, अपना तो कुछ था ही नहीं..।
जवानी के समय सभी चीजें अपने हाथ में और साथ में लगती है, बच्चे, पैसा, घूमना, खाना, पीना आदि सभी किंतु जब बुढ़ापा आता है तो सब कुछ हाथों से निकलता हुआ दिखता, बच्चे छोड़ देते है, शरीर और इंद्रियां भी घूमना फिरना स्वाद सब छोड़ने लगती है। सब कुछ ऐसा लगता है जैसे हमसे दूर जा रहा है जो जवानी में हमसे चिपका हुआ था सब दूर जा रहा है आंखों से औझल धुंधला हो रहा है, जो हमने खुद कमाया सब दूर जा रहा है। तभी महसूस होता है जीवन कितना भ्रम है झूठ है, जो जीवन भर किया वह अपना था ही नहीं वह तो केवल समय का एक छड़ था जो गुजर गया और हमने उसे अपना मान लिया जैसे मछली नदी की किसी धार को अपना समझ ले और बाद में उसी के लिए तड़फती रहे..।
जीवन का भ्रम बुजुर्गों की आंखों में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वो अपने आप से अपनों से कितना ठग चुके हैं उनको समझ ही नहीं आता कि उन्होंने किया क्या..?
जीवन इंसान को उसकी उम्मीद से ज्यादा बेबकूफ बनाता है, वह सेब के उस बीज की तरह होता है जिसे लोग थूक देते और गूदा गूदा खा लेते है मगर उसे अहम होता है कि पेड़ तो मैं ही बनूंगा..!