बीहनि कथा-“अंडरवियर”
मैथिली (बीहनि कथा)
” अंडरवियर ”
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जीबछ बाबू आ हुनक अर्धांगिनी अंजलि दुनूगोटे नोकरी करबाक कारण एक दोसर सऽ दूर-दूर रहैत छलाह।
– अंजलि किछु दिन पति स’ बिलग रहलाक पश्चात छूट्टी भेलापर पतिदेव जी के पास पहुंचलीह।
– घर घुसला क’ साथे बाजि उठलीह, सकठे नरक बनाकऽ राखने छथिन्ह। घरक कोना-कोना मे मैलक
एतेक मोट परत जमल अछि ।
-जीबछ बाबू के तरफ देखैत ओ कहलनि _
-कि यै..? काजवाली रोजदिन नञ आबइ छल जेऽ अहां घरक ई हाल बनौने छी,…
-ऊपर-नीचा, दायां-बाया चारु तरफ नजरि दौराबाक मध्य अंजलि के नजरि डोरी पर पसरल तरकछ(अंडरवियर) पर पड़ि गेलनि।
– ओ अचानक आगि बबूला भऽ क’ नाक भौं सिकोड़ैत बाजि उठलीह..
– आं यै,… अच्छा इ बताउ तऽ अहां…,
-इ अंडरवियर तऽ मात्र दुइए माह पहिने दोनारि चौक पर खरीदने छलहुँ, उहो डिक्सी नामक नामी-गिरामी कंपनी के छल.. ते एकर इलास्टिक एतेक जल्दी कोना अतीव ढँग स नमरि गेल अछि…?
-अचानक ई अनसोहाँत प्रश्न सुनि कऽ जीबछ बाबू क’ तत्काल किछु नञ फुरैलनि, मुदा किछु क्षण तक भौचक्का रहला क’ बाद अचानक ओ अंजलि कऽ आरोपक पाछाँ छिपल मंशा क’ साफ-साफ भांपि लेलनि।
-ओ तुरंत परिस्थिति क’ भांपैत औत्सुक्य भाव में अंजलि से बाजि उठलाह _
– हे गिरथाइन अहां कोन दुनिआ केऽ वासी छी,
“इ त’ मंडन मिश्र आओर हुनक अर्धांगिनी विदुषी भारती क’ पावन भुमि मिथिलांचल थिक,”
“जतऽ एकटा गृहस्थ जोड़ी द्वारा अप्पन कर्म क’ बल पर विद्वान संन्यासी आदिशंकराचार्य के मीमांसा आओर अद्वैत दर्शन क’ गूढ़ सिखाओल गेल छल।
– एतअ पति-पत्नी कऽ बीच रिश्ता क’ डोर, दिढ़ विश्वास पर टिकल रहैत अइ,ओ अंडरवियर कऽ डोरी के जकाँ लचीला नञ होइत अइ जेऽ कखनहुं फैलत आ सिकुड़ जायत ।
– अहां निफिकिर आओर निश्चिन्त रहू, जा धरि ई धरती पर अहां के पतिदेव जीवित रहताह ता धरि तक ओ एकछाहे अहींक छथि ।
– ई बात सुनितहि अंजलि के मन अप्पन गलती क मानब तैआर भेल आओर अपगरानि मे हुनक दुनू आँखि सऽ नोर झर-झर बहैय लागल।
रचनाकार – मनोज कुमार कर्ण
स्वरचित एवं मौलिक
कटिहार (बिहार)
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