बीमार पत्नी की इच्छा
मेरी तबीयत क्यों नहीं कभी भी
पूरी तरह से ही पूरा खराब हो जाय
कहीं भी दुर्घटना का शिकार होकर
हाथ पैर दोनों टूट कर बेकार जाय
मुझे कभी भी इन सब बातों का
कहीं कुछ भी नहीं रहेगा मलाल
अपना मन काे मार कर ही सही
मैं कर लूंगा स्वयं अपनी देखभाल
मैं मानता हूँ कि इससे अवश्य ही
मेरा शारीरिक कष्ट ताे कुछ बढ़ेगा
पर कम से कम मेरा ब्लड प्रेशर ताे
इससे कभी भी उपर ताे नहीं चढेगा
भगवान न करे कि भविष्य में कभी
गलती से ऐसा दिन भी हो जाये
और स्वस्थ पत्नी की हालत घर में
थोड़ा भी बीमार लगने जैसा हो जाये
पत्नी के कभी बीमार हो जाने से ताे
घर का वातावरण ही हो जाता है तंग
थोड़ा सा भी मन प्रसन्न चित्त रहने से
घर की शाॅंति हो सकती है पूरी भंग
तब बात बात पर ही पत्नी का ताना
कान खोल चुपचाप सुनना पड़ता है
घर में उत्पन्न तनाव को ताे देख कर
मन मार कहीं बाहर जाना पड़ता है
घर के माहौल में ताे पूरी तरह से ही
गहरा तनाव हमेशा छाया रहता है
बीमार की सेवा से अलग हट कर ताे
कुछ भी करना यहाँ मना ही रहता है
गलती से अगर कभी भी घर में
किसी के चेहरे पर आ जाती मुस्कान
ताे पत्नी की उल्टी सीधी बाताें काे सुन
बड़ी ही मुश्किल में पड़ जाती है जान
क्या करें हम भी उपर मन से ही सही
सहानुभूति का पूरा ही ढ़ोंग रचते हैं
तब ताे किसी तरह अपने घर में अपनी
बीमार पड़ी पत्नी के कोप से बचते हैं
ध्यान रहता है कि गलती से भी कभी
हमारे चेहरे पर कहीं मुस्कान न दिखे
जिससे बिस्तर पर लेटे पत्नी के तेवर
अचानक बदल कर हो जाये न तीखे
घर में प्राण हमेशा कंचू के पत्ते पर पड़े
पानी की तरह थर-थर काँपता रहता है
टी वी पर तारक मेहता का उल्टा चश्मा
देख कर भी हॅंसी को दबाना पड़ता है
भूल से भी अपने चेहरे पर मुस्कान काे
कभी किसी को नजर नहीं आने देता हूँ
जब कभी मैं पत्नी के सामने में रहता
चेहरे पर अपनी मायूसी तान लेता हूँ
पता नहीं क्यों पत्नी अपने मन में कैसे
बिल्कुल ही झूठा खयाल पाल लेती है
मेरे द्वारा किये गये सही देखभाल को
मुझ पर पूरा संदेह कर टाल देती है
बीमार होने के बाद ताे पत्नी अपने
मन ही मन कर लेती है कठाेर संकल्प
उसकी सेवा के अतिरिक्त इस घर में
किसी के लिये न हो कोई और विकल्प
थोड़ी सी भी चूक होने पर वह मानेगी
उसे बीमार करने में मेरा ही हाथ है
और उसके विरुद्ध रची इस चाल में
किसी तीसरे का भी अवश्य मेरा साथ है
स्वतंत्रता के इतने सालों के बाद भी
घर में अभिव्यक्ति की आजादी कहाँ
मन मार कर हालत का सामना करने का
सच कहूॅं तो हो जाता हूं आदि यहाॅं
वह कभी बीमार ही क्यों पड़ती है जाे
अपने घर में हम घुट घुट कर ही जीते हैं
मन ही मन उसकी सोच काे देख कर
उदासी में आँसू फुट फुट कर पीते हैं
हद ताे तब हाेती है जब हल्के बुखार में
वह जाेर जाेर से करती रहती है चित्कार
उनकी जगह किसी और काे लाने का मैं
कर रहा हूँ उसके प्राण छूटने का इंतजार