बोलो ! ईश्वर / (नवगीत)
बोलो ! ईश्वर ! अब कैसे हो ?
उड़ा रहे
फोकट में पैसे
चाय फुरकते पान चबाते
बगलोलों से
छद्म प्रसंशा
सुन-सुन अपने गाल फुलाते
बरसा बहुत
बहा सब पानी
ओंधे पड़े घड़े जैसे हो ।
खोल किताबें
शब्द चुनाचुन
इधर-उधर की डींग हाँकना
चालू है, कि
बंद हो गया
चटका चप्पल सड़क नापना
बदली-सी इन
स्थितियों में
बदले या पहले जैसे हो ।
अब भी लगता
गिर्द तुम्हारे
वही चाटूकारों का मजमा
अब भी आँखें
वही पुरानी
या फिर बदल लिया है चश्मा
बोलो भी कुछ
सुधरे हो ! या
जैसे थे बिल्कुल वैसे हो ।
जब तक पैसा
रहा जेब में
बाँटा, खरचा मौज उड़ाया
इंग्लिश-गाली
बकी हवा में
और ‘धुएँ में लट्ठ घुमाया’
पूछ रहे अब
बच्चे, पापा !
तुम शरीर हो, या पैसे हो ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी