बीत गए दिन..
बीत गए दिन घरौंदे सजाने में जिनके
वक्त की राह पर निशां नहीं हैं उनके।
याद उसका मुझे करना भी लाज़मी था।
कोई कब तक इंतजार करता याद आने का।।
हुस्न और इश्क के कारनामों के,
चर्चे बड़े हैं नामवालों के।
दिल जो आह भरे , धड़के
उस एक आह पर मरके,
बन गईं, मोहब्बत-ए-दास्तां कितने।।
मिले थे उम्रतक साथ में चलते
कुछ कदम भी तो हमसफर बनते।
हम इन्तजार करें भी तो कैसे
हर तरफ तो उसकी आशनाई है।।