बीत गए गम के बादल
बीत गए अब गम के बादल,
कटे धुंध के घेरे ।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
देखो कैसी बेला आयी,
भय प्राणों का छाया।
चीन जनित कीड़े ने जग में,
है आतंक मचाया।
हुआ कीट का है भय ऐसा ,
हुए दूर सब मेरे।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
साथी साथी से दूर हुआ,
दूर हुए घर वाले।
होते भी क्यों ना दूर सभी,
पड़े प्राण के लाले।
हर पल हर क्षण ऐसा लगता,
मृत्यु खड़ी अब नेरे।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
सूझबूझ जग ने अपनाकर,
पूरण कर दी बंदी।
रोक दिया फैलाव कीट का,
पर छायी अति मंदी।
जानकार जुटे विज्ञान के ,
आया जग में टीका।
जीवन आस बँधी लोगों में,
कहर पड़ा अब फीका।
दौड़ पड़ा फिर से जग जैसे,
बहे समीर सबेरे।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
जब जब कोई संकट आये,
धैर्य सभी अपनाओ।
सूझ बूझ अरु ज्ञान के संग,
संकट सकल मिटाओ।
कहे ओम जीवन नैया में,
मिटें दुःख के फेरे।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
बीत गए अब गम के बादल,
कटे धुंध के घेरे ।
अस्ताचल कर गमन दिवाकर,
मधुरिम हास्य बिखेरे।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम