बीते हुए दिन बचपन के
मेरा बचपन
मां …
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा
लाठी संग होती मामी को ससुराल से लाना .. हःह
अच्छा और क्या क्या होता था माँ ….बच्चे ने पूछा
कभी कभी भालू भैया भी संग मदारी के आते
नीले पीले लाल गुलाबी नारंगी गुब्बारे लाते
मेले में भी अपनी धाक थी, बुड़िया के बालों के छल्ले
उंगली थाम भैया संग घूमती होती अपनी बल्ले बल्ले
शाम को वापिस लकड़ी की गाड़ी और फिरकी चलाना
एक बांसुरी बहुत जरूरी थी जिसको सीखे बजाना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा
काभी सपेरा भी अपने अंग बहुत रंग सांपों के दिखलाता
शहतूत के तूत तोड़ते मीठे और पलाश का होता फांटा
खट्टे मीठे फाल्शे खाते, इमली संग चूरन रंग बिरंगा
पीपल बाबा के पास बाग में जामुन था बैगनी रंग का
आम तोड़ते सावन तक बोरिंग का धड़ धड़ पानी
दही-जलेबी,खरबूज-कलींदे खूब खिलाती नानी
ट्यूब बेल जो खेत लगा था छप छप वहां नहाना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा
गली में होता पोसम्पा, नीली पीली साड़ी
मेढ़क छू, छुपन-छपाई, लंगड़ी चाल निराली
तोड़ मुकैन्या खेले खाए आज वही है औषधि
गोंद निकाला नीम बबुल से आज बन गई निधि
गर्मी में लूडो, कैरम, सांप-सीढ़ी और बगिया खेले
गुटका कंचा गिल्ली डंडा फिर मार कुटाई भी झेले
रवि को रामायण देखते, नन्दन पढ़ने का बहाना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा
लेकिन माँ आप ने तो बता दिया अब पापा की बारी
मैं क्या बताऊँ क्या कल की तस्वीर दिखाऊं
गंगा मैया कालू कुत्ता सुआ पटे कहाँ से लाऊँ
फिर भी कोशिस करता हूँ तस्वीर तुम्हें दिखाने की
वो दिन भी क्या दिन थे खुशियां थी जेब जमाने की
गाने छोड़ो हमको तो था देशभक्ति का चसखा
फिल्मों अनुमति नहीं थी कार्यक्रम एक ही रक्खा
राम लखन बनके ही था दोनोंभाई का रहना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा..
गली मोहल्ले अपन होते थे बड़ा आदमी सपने होते थे
चाचा ताऊ हर कोई होता,किसी दादा के हम पोते थे
अपना पराया कुछ न समझते रोज सवेरे शाखा जाते थे
दौड़ लगाते दण्ड पलते, फिर ताजा दूध गाँव से लाते थे
बहुत काम था खेतो पर भी और तालाब नहाते थे
कुश्ती कबड्डी खेल हमारे दंगल भी अजमाते थे
कविसम्मेलन में पक्का था अपना भी इक गाना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा..
आटा के संग तराजू पर कभी हम बैठा करते
ताऊ दादा सब चौपाल शाम को ठठठा करते
रोज सवेरे ताजा मक्खन गुण के संग रात की रोटी
बड़ा स्वाद था गहरा नेह का और लड़ती थी छोटी
चोरी से उपन्यास थे पड़ते जब हम पकड़े जाते
पीठ सिकाई माँ करती थी पिता जी बेल्ट लगाते
तेरी बुआ रो पड़ती थी फिर होता बड़ा हंगामा
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा..
पापा उपन्यास क्या होता है ………..
अरे उपन्यास ही नहीं कोमिक्स का भी जमाना था
बड़े वीडिओ चलते रात में जनरेटर का चलाना था
एक बड़ा सा टीवी टेबिल पर रखा होता था
बूस्टर स्टेपलाइजर एंटीना सेट करना था
सुनील गावस्कर कपिल देव से खेलो को जाना था
उढ़ता सिक्ख मिल्खा सिह को भी तब पहचाना था
पूरे मोहल्ले का मेरे ही घर में सन्डे को आना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा..
उपन्यास …
ओह
जैसे आज नेत्फ्लिक्स पर बेब सीरिज का चलना
बिना चित्रों के शब्दों में था पूरी कथा को पढना
याद मुझे चौराहे पर केवल टी वी एक रखा था
हुजूम इकठ्ठा हुआ जब इंदिरा का शव देखा था
शुक्ला जी कि कवितायेँ या दिनकर के वो गीत
शिक्षा में होती थी संस्कृत और बहुत सी सीख
प्रातः उठकर मात पिता की करते चरण वन्दना
मेरे बचपन ………………
एक बरगद था भारी इमली औ ऊँचा वृक्ष सहजन का
दो गूलर, कचनार, मौल श्री, अमरुद की बगिया वन था
बहुत बेरियां, नहर के संग में आम कटहल बगीचा
शीशम, कीकर, ककरोंदा वेळ पत्थर को भी सींचा
सबको प्रणाम नमस्ते कहना आशीष सभी की लेना
सभी के संग मिलजुल कर रहना चाहे रोज झगड़ना
रोज शिवालय, हर हर गंगे कह कुंए से पाना लाना
मेरे बचपन में बेटा आता था बन्दर मामा..
विद्यालय में सर नहीं कह सकते वो गुरु जी होते
शिशु मन्दिर की बात निराली आचार्य जी कहते
मैया होती जिसको आज अप सभी मेड हो कहते
भैया जी कहलाते जो आज ड्राइवर बनकर चलते
तब अंकल और आंटी केवल अजनबी होते थे
हिंदी शब्दों में मीठे रिश्तों को हम पिरोते थे
कहते कहते माँ पापा की आँख में आंसू आना
कहाँ गुम हुआ इतना प्यारा अपना जमाना
मेरे बचपन ………………