बीते साल
बीते साल के खूबसूरत लम्हे शब्दो के सिन्धु में
जीवन भर के हर एक पल,
मन को छू गए शब्दसिंधु के खेल।
जब रुक गए सब विचारों की धार,
आँखों को मिल गयी कविता की प्यारी चादर।
अप्रतिमता से भरी थी जिसमें गहराई,
वही खो गयी थी जब हिमालयी उचाई।
अकल्पनीय कला का था उसमें जादू,
मनोमयी सरस्वती की प्रभा का उमड़ दम।
कुछ लम्हे हुये अद्वितीया और अद्वितीय,
जब उठी उसमें सृष्टि की अनुभूति।
मन को आराम और सुकून की मिल गई,
परिश्रम और विचारों में ही खो जाती थी।
कविता की नदी से जब बह रही थी छोटी,
उसे अमरत्व और यश के आगे कुछ भी नहीं।
तब इसने शब्दसिंधु की आराधना की,
चलो मिलकर सब नदियों की मधुशाला बनाईं।
जीवन भर के हर एक पल,
मन को छू गए शब्दसिंधु के खेल।
कविता की राहों में, हम सब तैर गए,
आपको इस काव्य के विचारों से प्यार आया?
कार्तिक नितिन शर्मा