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30 Jan 2024 · 1 min read

बीते लम़्हे

बरसात की बूंदे जब गिरतीं हैं,
ज़ेहन के पर्दे पर एक तस्वीर उभरकर ,
उनके साथ बीते लम़्हों की याद दिला जाती है ,

वो मसर्रत के पल, वो बातें ,
वो शरारत , वो मुस्कुराहट ,

वो बेसाख़्ता खिलखिलाहट ,
वो गिले- शिकवे , वो रूठना ,

वो मनाने पर मान जाना ,
वो मेरे शाने पर सुकुँ से सो जाना ,

फिर कुछ सोच कर उदास हो जाता हूं ,
उनकी कमी के एहसास में डूब जाता हूं ,

गर्दिश-ए- दौरा में कुदरत के हाथों
मजबूर पाता हूं ,
कुछ इस कदर खुद से समझौता कर
ज़िदगी गुज़ारता हूं।

Language: Hindi
140 Views
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