बीते लम़्हे
बरसात की बूंदे जब गिरतीं हैं,
ज़ेहन के पर्दे पर एक तस्वीर उभरकर ,
उनके साथ बीते लम़्हों की याद दिला जाती है ,
वो मसर्रत के पल, वो बातें ,
वो शरारत , वो मुस्कुराहट ,
वो बेसाख़्ता खिलखिलाहट ,
वो गिले- शिकवे , वो रूठना ,
वो मनाने पर मान जाना ,
वो मेरे शाने पर सुकुँ से सो जाना ,
फिर कुछ सोच कर उदास हो जाता हूं ,
उनकी कमी के एहसास में डूब जाता हूं ,
गर्दिश-ए- दौरा में कुदरत के हाथों
मजबूर पाता हूं ,
कुछ इस कदर खुद से समझौता कर
ज़िदगी गुज़ारता हूं।