बीते दिन
बीते दिन ________✍️
हम कभी खुश थे आबाद थे
बीत गए जो दिन उनकी जान थे
अपनी हर मनमानियों से आजाद थे
कभी मिट्टी से घरौंदा रच देते थे
कभी माँ- पापा की नजरों से बच कर तितलियों के पीछे भग देते थे
तब कोई प्यासा राहगीर मेरी चौखट आता, तो प्रेम से भरा जग देते थे
देता जाता वो लाख दुवाएं, हम तो बस हंस देते थे ,
यूँ तो बड़ी नहीं बस छोटी सी दुनिया थी
भरी दुपहरी और चूर्ण की पुड़िया थी
रातों में जिसके ख्वाब बुनते वो कोई परी नहीं अपितु मेरी प्यारी कतरक की गुड़िया थी
गर्मियों की चलती लू थी और मेरी पतंग पर सुशोभित तुलिया थी ,
यूं तो कोई खास दौलत मेरे पास नहीं थी
कंचे से भरी बोतल, माचिस से निर्मित कुछ ताश थी
मिट्टी के गुल्लक में एकत्रित किया था कुछ ज़मीर
अपनी दुनिया का सबसे बड़ा था मै अमीर,
पढ़ाई में हम थे जीरो पर शक्ल से हम थे हीरो
पढ़ाई के नाम पर आती थी नींद जैसे कोई भैंस के सामने बजा रहा हो बीन
गुरुजन खींचते थे हमारे कान पर दिल में था उनका बहुत सम्मान
तभी सब बोलते थे हमें क्लास की जान ,
वो कुछ गर्म रातों के जुगनू बसा रखे हैं आंखो में
कोयल की कूक दबा रखी है बातो में, बड़ा आदर था पापा की उन लातो में
बड़ा याद आती है वो इमली जो फंस जाती थी दांतो में
पथ पर निरंतर कैसे चलना है ये अक्सर मैने दादी से सीखा है
जैसे चाँद बचपन की नज़र बिन फिका है,
मिट्टी का घरौंदा मेरा बेशक कच्चा था पर दिल मेरा बड़ा सच्चा था
अब कहां आ गए कौन सी दुनिया में ?
आज हर चीज़ है पर कहां भाती है, समझदारी भरी जिंदगी में बीते दिनों की याद आती है
हम अब के जैसे ना बर्बाद थे
हम कभी खुश थे आबाद थे
बीत गए जो दिन उनकी जान थे ।।
______संदीप गौड़ राजपूत__✍️ स्वरचित___