बीते दिन गिन गिन मत बोलो
कुटिल कुचाली के कर्मों से,
घिन आये तो घिन मत बोलो।
बहुत सरल है प्रेम की बोली,
बोली बहुत कठिन मत बोलो।
वर्तमान है अतिथि इसे
भगवान सरीखा आदर दो,
स्वर्णिम यदि भविष्य चाहो तो
बीते दिन गिन गिन मत बोलो।।
संजय नारायण
कुटिल कुचाली के कर्मों से,
घिन आये तो घिन मत बोलो।
बहुत सरल है प्रेम की बोली,
बोली बहुत कठिन मत बोलो।
वर्तमान है अतिथि इसे
भगवान सरीखा आदर दो,
स्वर्णिम यदि भविष्य चाहो तो
बीते दिन गिन गिन मत बोलो।।
संजय नारायण