बीती रातें
बीती रातें (वीर रस)
आयी थी मिलने की खातिर, चली गयी जब बीती रात।
नहीँ कभी भी वह दिखती है,जब होता है नवल प्रभात।
नित मिन्नत वह करती फिरती,कब सूरज हो जाएं अस्त।
तब वह आ कर धूम मचाये,देखे अपना जीवन मस्त।
बीती रात सुहानी अनुपम,हुआ सुखी मन का संसार।
चाल निराली मतवाली थी,अदा अनोखी दिव्य बहार।
सकल वेदना कष्ट काट कर,दिया रात ने अनुपम भेंट।
भूल गया मन जग के झंझट,लिया रात ने सकल समेट।
कब बीती वह रात सुहानी,एक नींद में सब कुछ पार।
जोह रहा दिल उसी रात को,आये फिर फिर बारंबार।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।