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26 Feb 2018 · 1 min read

बीता हुआ कल फिर से करीब आया है

बीता हुआ कल फिर से करीब आया है
भूले नग्मों में एक सुर सा उभर आया है।

सलवटों में हैं लिखीं दास्ताँ बचपन की
आंसूओ में मेरा बचपन उभर आया है।

जिनके कन्धों पर टिकाते थे हम सर अपना
उन्हीं कन्धों पर एक बोझ नज़र आया है।

जिन आंखों के चराग़ों ने की रौशन दुनिया
उन्ही आंखों में एक दर्द उभर आया है।

हसरतों से सजे उस वक्त को कुछ याद करो
खुशनुमा वक्त मेरे हिज़्र का सरमाया है।

मेरी मुस्कान सज़ा लो लब पर अपने
दिल मेरा आज तुम्हे देख कर भर आया है।

विपिन

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