बीता हुआ कल फिर से करीब आया है
बीता हुआ कल फिर से करीब आया है
भूले नग्मों में एक सुर सा उभर आया है।
सलवटों में हैं लिखीं दास्ताँ बचपन की
आंसूओ में मेरा बचपन उभर आया है।
जिनके कन्धों पर टिकाते थे हम सर अपना
उन्हीं कन्धों पर एक बोझ नज़र आया है।
जिन आंखों के चराग़ों ने की रौशन दुनिया
उन्ही आंखों में एक दर्द उभर आया है।
हसरतों से सजे उस वक्त को कुछ याद करो
खुशनुमा वक्त मेरे हिज़्र का सरमाया है।
मेरी मुस्कान सज़ा लो लब पर अपने
दिल मेरा आज तुम्हे देख कर भर आया है।
विपिन