बीता पल
फुर्सत के पल में बैठे तो,
याद आ गई बीते पल की।
कितने सुखद अनुभूति हो चली,
बीत गया जो कल की।
यह जीवन अनमोल पलो को,
भूल गया था बल्कि।
बीते परिवर्तन के दिन ,
याद जो आयी आखे छलकी।
किया वही जो सही लगा था
न चिंता की फल की।
झेल रहा था प्रबल समस्या
चाह रही मन मे किसी हल की।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र