ग़ज़ल(इश्क में घुल गयी वो ,डली ज़िन्दगी –)
इश्क में घुल गयी वो ,डली ज़िन्दगी
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हर्फ़ बनके ग़ज़ल में ढली ज़िन्दगी
चाँद बनके फलक पे सजी ज़िन्दगी
खुल गये जब कभी वर्क में ही मिली
थम गये पल वहीं जब थमी ज़िन्दगी
रेशमी रूपसी नाज़नीं दिलरुबा
गुलमुहर गुल जवां सी लगी ज़िन्दगी
भीगती ,नाचती बारिशों में कभी
सांस में फिर लिपटती रही ज़िन्दगी
वो कली सी लगी फूटती शाख से
इश्क में घुल गयी वो डली ज़िन्दगी
फूल की पंखुडी सी पली नाज से
प्यार की रागिनी सी लगी ज़िन्दगी
डॉक्टर रागिनी शर्मा इंदौर
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