बीच दरिया में लश्कर ए तूफ़ान है
बीच दरिया में लश्कर ए तूफ़ान है
अब ज़रा सा भी बढ़ना न आसान है
अजनबी लोग हैं अजनबी है सफ़र
अजनबी रास्तों की न पहचान है
क्यों रहा कूद इतना ज़माने में तू
दो घड़ी के लिए जब तू मेहमान है
पूछता फिर रहा है किधर जाऊँ मैं
दिल मुहब्बत की राहों से अन्जान है
क्यों परेशान दिखता नज़र आ रहा
वो रवायत की बातों से हैरान है
रह गया वो ही पीछे सफ़र में सदा
जिस किसी का ज़ियादा सा सामान है
वास्ते इसके ही तो बनाया जहाँ
कीमती जग में सबसे ये इन्सान है
सिर्फ़ ‘आनन्द’ ही तो नहीं बेख़बर
ज़िन्दगी जो न समझा वो नादान है
स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर