‘बिहार में का बा’ छोड़िए, ‘देश में का बा’ सोचिए जनाब !
सामयिक लेख: इनसाइड स्टोरी
सुशील कुमार ‘नवीन’
हमारे एक जानकार हैं। नाम है रामेश्वर। नाम के अनुरूप ही दुनिया की हर समस्या उनकी है। किसी को उनकी चिंता हो न हो,पर उन्हें सब की चिंता रहती है। कड़वा जरूर बोलते हैं पर ताल ठोककर बोलते हैं। मजाल क्या, कोई उनकी बात को काट दे। तर्क ही ऐसे देते हैं कि सुनने वाले को उनकी बात पर सोचना ही पड़ता है। दिन में जब तक पांच-सात लोगों से मिल मन की भड़ास न निकाल लें तब तक उनके पेट का अफारा(गैस) ही नहीं मिटता। आज सुबह-सुबह हम उनके फंस गए। उम्र में बड़े है सो उनसे आंख भी नहीं फेर सकते थे। अब तो उनको सुनना और बाद में उसे मनन करना हमारी मजबूरी थी।
राम-राम के बाद वो अपने मूड में आ गए। बोले-आजकल तो कुछ भी हो सकता है। मैने कहा-क्या हो गया चाचा। आज सुबह-सुबह किस झंझावात ने तुम्हें झिंझोर दिया। दुनिया उलट-पुलट हो गई क्या। बोले-तुम्हें तो हर चीज में स्वाद लेने की आदत है। बातों की गम्भीरता को भी समझा करो। तुम्हें पता है आजकल क्या हो रहा है। मेरे जवाब का इंतजार किए बिना ही वो फिर शुरू हो गए। बोले-आजकल वो हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। उत्सुकतावश मैंने भी पूछा-चचा, हो क्या रहा है?ये तो बताओ। बोले-जो काम दिन में होते थे अब वो रातों को होने लगे हैं। न्याय के दरवाजे तक रातों को खुल रहे हैं। बस आपकी बात और जेब दोनों में दम होना चाहिए। कोर्ट का काम खबरिया चैनल कर रहे हैं। किसी गवाह और साक्ष्य की उन्हें कोई जरूरत ही नहीं है। खुद ही जज बन फैसला सुना रहे हैं। हर एक रिपोर्टर और एंकर काला कोट पहन अपनी ही अदालत में वकील और जज का रोल निभाते दिख रहे हैं। जैसे सबकुछ बदलने का ठेका अब इनके पास ही है। मैंने कहा-तो इसमें दिक्कत क्या है। वो अपना काम कर रहे हैं। करने दीजिए। हमारे इतना कहते ही वो सीधा हम पर शब्दों के बाण लेकर बरस पड़े। बोले-तुम्हें कोई दिक्कत नहीं है। क्यों तुम विदेशी हो। बाहर मुल्क के हो। बड़े आए, हमें कोई दिक्कत नहीं कहने वाले। सोचो, जरा सोचो। आज देश मे कोरोना से मरने वालों की संख्या एक लाख पार कर गई है। वैक्सीन का अभी तक कोई अता-पता नहीं। डोनाल्ड ट्रम्प और उसकी घरबारन मेलिनिया को कोरोना हो गया,इसकी तो चिंता है तुम्हें। नहीं है तो देश के लोगों की। इस मुए कोरोना ने लाखों लोग बेरोजगार कर घर बैठा दिए और दावा हो रहा है कि बेरोजगारी की दर घट गई है। कह रहे हैं कि बेरोजगारी की यह दर पिछले 18 माह के निचले स्तर की है। तुम ही बताओ, बेरोजगारी की दर घट रही है तो लोग क्यों रो रहे हैं। देश भर के युवा राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस तक मना राजतंत्र को जगाने का प्रयास कर चुके हैं।….आईपीएल में कोहली की खराब फार्म चिंता का विषय हो सकती है, पर देश के किसान की बदहाल फार्म के बारे में सोचने का वक्त तुम्हारे पास थोड़े ही है। बस तुमने तो विधेयक बना दिए हैं। इसका किसे फायदा होना है, सब जानते हैं। किसान तो सदा लुटेगा, मुनाफाखोर सदा मजे लेते आए हैं और आगे भी लेते रहेंगे। बस इनके चेहरे बदल जाएंगे। पर तुम्हे समझाने का क्या फायदा, तुम्हें तो ‘बिहार में का बा’ की फिक्र है। अरे ‘देश में का बा’ इस पर भी कभी विचार करो। वो आगे कुछ कहते इससे पहले बेटी ने पानी के गिलासों से भरी ट्रे उनके आगे कर दी। खुश रहो बेटा, कह गटागट चार गिलास पी गए। पानी पीकर एक लंबी सांस ली और अच्छा बेटा, राम राम कहकर चल दिए। उनके जाने के बाद ट्रे में बचे दो गिलास का पानी पीया तब जान में जान आई। आधे एक घण्टा यदि चाचा को और सुनना पड़ जाता तो देश की चिंता में बीपी लो होना पक्का था। आपको क्या लगा? चाचा कुछ गलत कह रहे थे। मेरे अनुसार चाचा जैसे यदि देश में सब हो जाएं तो हर सोया इंसान जाग जाएगा। अच्छा,राम राम।
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।
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