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1 Dec 2022 · 1 min read

बिहार छात्र

संस्कृतियो के आरंभ से ही,
मैने संस्कृतियों को पाला है
पीड़ा कष्ट क्रंदन सब सहकर
अशोक को हमने निखारा है

मेघों की वाणी बन,
जब विद्यापति का गान किया
तब कुंवर ने सन सत्तावन में
विजय बिगुल का पान किया
अरे…हम बिहार के माटी है
हमको बेच न पाओगे

शीतलता अमृत को त्याग
प्रचंड अग्नि को निरूपूंगी
सूरज को व्योम से खीच
डरती पर तब पटूंगी

अरे…हम बिहार के लाल है
किसी राजा के दरबारी नही
दिनकर नया न आने देना
कविता पुरानी न दोहराने देना

“सिंहासन खाली करो की,
जनता आती है।।”

Language: Hindi
7 Likes · 6 Comments · 381 Views

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