बिहारी मोहनदास गाँधी
मोहनदास गाँधी 100 और कुछ साल पहले बिहार आकर ही पूरे देश के लिए महात्मा गाँधी और सम्पूर्ण संसार के लिए विश्ववंद्य बन पाए थे । गाँधी जी की यह यात्रा उनके द्वारा भारत को ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति दिलाने को लेकर प्रथम यात्रा थी । बिहार से शुरू हुई यह यात्रा बीते दिवस पटना में संपूर्ण देश से आये 818 स्वतन्त्रता सेनानियों के मिलन-मेला से ऐसा लगा, बिहार ही पुनः देश को नई दिशा और पहचान दे सकता है ।
तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने जब इन सबों को भागलपुरी शॉल और गाँधी जी की प्रतीकार्थ मूर्त्ति प्रदान किया, तो माहौल भावुक हो गया । इनमें 554 सेनानी बिहार से और 264 सेनानी अन्य राज्यों से हैं । सबसे आकर्षण का केंद्र 110 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी रहे, जो उम्र को धता बताते हुए युवाओं जैसे ज़ज़्बे को लिए मात्र 10 साल के किशोर बन स्वयं को बेमिसाल उदाहरण बना डाले। उम्र की अस्वस्थता कारणों से 2,154 महान सेनानियों को बिहार सरकार के पदाधिकारी उनके घर जाकर ही सम्मानित किए ।
उस साल स्व. प्रणब दा का राष्ट्रपति के रूप में यह बिहार के लिए लगातार 5वें दौरे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, 1917 की याद को ताजा करने के उद्देश्य से लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ़्फ़रपुर के एक व्याख्याता ने गाँधी जी के रूप धरकर पटना से भाया मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी पहुँचे, जहाँ गांधी जी के वर्तमान रूप को भी काफी सम्मान मिल रहा है।
समाजवादी से गाँधीवादी बन संसार को सन्देश देने में सफल रहे बिहार के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार और उनकी टीम तथा बिहार सरकार के सभी पदाधिकारी, कर्मीगण और सभी स्वयंसेवियों को अपने बिहार को एकबार फिर विश्व पटल पर लाने के लिए सादर धन्यवाद एवं सभी स्वतन्त्रता सेनानियों को उन्हें स्वस्थ रहने के लिए अनंत शुभकामनाएं ।