बिस्किट का पैकेट
पापा ने अभी घर के सामान का
थैला बस रखा ही था
कि दो बच्चों ने
अपने नन्हे हाथो को थैले मे
एक साथ डाल दिया।
दोनों का हाथ
एक ही बिस्किट के
पैकेट पर जाके लगा।
पैकेट्स और भी थे!!
पर सवाल अब मालिकाना
हक़ का था।
पैकेट को मज़बूती
से थामे कोमल हाथ
पूरा जोर लगा रहे थे।
कोई भी झुकने को तैयार नही।
हाथों के दबाव से पैकेट के
अंदर ही चूर चूर हुई
बिस्किट को महसूस कर,
दोनों अब रोने लगे थे।
अम्मा ने जब ये आवाज़ सुनी।
तो वो दौड़ी आयी।
दोनों का हाल देखकर
पहले तो एक एक चपत लगाई
फिर पैकेट को खोलकर
दो तश्तरियों मे
बिस्किट के टुकडों
को बराबर बराबर
बाँट दिया।
दो मासूम
अब बिस्किट खाने मे मशगूल थे।
भींगी आंखे अब
खिलखिला कर
मुस्कुराने लगी थी।
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
बसों और ट्रेनों
में चढ़ते उतरते लोग भी
अक्सर उस टूटे
हुए बिस्किट के पैकेट
की याद दिला जाते हैं!!
हम बस बड़े दिखते है,
होते नही हैं!!!