Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Dec 2021 · 1 min read

बिषय भोग-

मनुष्य का मन बिषय भोगों की तरफ ज्यादा दौड़ता रहता है। और फिर मन उसी भोगो रमने लगता है।जो भोग चित् में समा जाते हैं,वे फिर चित् से निकलते नही है। और फिर मन उन्हीं की याद में डूबा रहता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी भोगों में लिप्त नही होना चाहिए। जीवन यही भोग, मनुष्य को रोगी बना देते हैं!बिषय भोगों को,इस तरह से न भोगा जाये कि वह मन पर सवार हो जाये। इसलिए मनुष्य को अपने मन में जमें हुए कचरे को हमेशा साफ करते रहना चाहिए। और इस कचरे को साफ करने के लिए सत्संग की जरूरत पड़ती है।अगर आप प्रतिदिन सत्संग नही कर पा रहे हों तो आप प्रतिदिन कोई धार्मिक पुस्तकें पढ़ें। उससे आपका ज्ञान भी बढ़ेगा और मन भी शांत रहेगा।मन की प्रवृत्ति होती है,कि वह बिषय भोगों को भोगना चाहता है। और फिर मन जीव को भटका देता है। इसलिए मन को हमेशा अपने काबू में रखें।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 1 Comment · 483 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अश'आर हैं तेरे।
अश'आर हैं तेरे।
Neelam Sharma
एक मुट्ठी राख
एक मुट्ठी राख
Shekhar Chandra Mitra
" तू "
Dr. Kishan tandon kranti
*आत्म-मंथन*
*आत्म-मंथन*
Dr. Priya Gupta
मोहे वृंदावन न भायै, .....(ऊधो प्रसंग)
मोहे वृंदावन न भायै, .....(ऊधो प्रसंग)
पं अंजू पांडेय अश्रु
*****सबके मन मे राम *****
*****सबके मन मे राम *****
Kavita Chouhan
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
*चाल*
*चाल*
Harminder Kaur
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
शेखर सिंह
"आओ मिलकर दीप जलायें "
Chunnu Lal Gupta
पीड़ा थकान से ज्यादा अपमान दिया करता है ।
पीड़ा थकान से ज्यादा अपमान दिया करता है ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
*
*"परछाई"*
Shashi kala vyas
मन वैरागी हो गया
मन वैरागी हो गया
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
" सत कर्म"
Yogendra Chaturwedi
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
Jogendar singh
🙅नया सुझाव🙅
🙅नया सुझाव🙅
*प्रणय प्रभात*
मुक्तक
मुक्तक
Suryakant Dwivedi
2850.*पूर्णिका*
2850.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आम, नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े पेड़ काटकर..
आम, नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े पेड़ काटकर..
Ranjeet kumar patre
*......कब तक..... **
*......कब तक..... **
Naushaba Suriya
चाहत
चाहत
Sûrëkhâ
वक्त का सिलसिला बना परिंदा
वक्त का सिलसिला बना परिंदा
Ravi Shukla
मै ना सुनूंगी
मै ना सुनूंगी
भरत कुमार सोलंकी
जीवन के रूप (कविता संग्रह)
जीवन के रूप (कविता संग्रह)
Pakhi Jain
कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
Manisha Manjari
Being quiet not always shows you're wise but sometimes it sh
Being quiet not always shows you're wise but sometimes it sh
Sukoon
मित्रता दिवस पर विशेष
मित्रता दिवस पर विशेष
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
Converse with the powers
Converse with the powers
Dhriti Mishra
मैं इस कदर हो गया हूँ पागल,तेरे प्यार में ।
मैं इस कदर हो गया हूँ पागल,तेरे प्यार में ।
Dr. Man Mohan Krishna
Loading...