बिल्ली अगर रास्ता काट दे तो
बिल्ली द्वारा रास्ता काटने की बात को कुछ लोग इसे कोरा अंधविश्वास कहते हैं,तो कुछ वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसते हुए इसे आने वाले खतरे के पूर्वाभास से जोड़ते हैं। कुछ लोग बिल्ली के रंग से भी पड़ने वाले इसके साकारात्मक और नाकारात्मक प्रभाव की व्याख्या करते हैं। गंभीर आलोचक इसे विस्तार से परिभाषित करते हुए कहते हैं कि कहाॅं लोग अब चाॅंद पर पहुॅंच गया है और कुछ लोग अब भी सब कुछ छोड़ छाड़ कर एक निरीह जानवर बिल्ली के पीछे पड़ा हुआ है,पर स्थिति से सामना होने पर यही बड़बोले लोग ऑंखें बंद कर इसके पीछे के भय की तत्काल मन ही मन कल्पना कर चुपचाप इधर उधर देखते हुए इसे मानने को बाध्य हो जाते हैं। कल रात बाईक से मैं 9:30 बजे बाजार से आ रहा था। मेरी बायीं और दायीं ओर भी दो और बाईक थी। एक आदमी साईकिल से मस्त मुड में फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए मुझसे कुछ आगे अपने धुन में जा रहा था। अचानक एक काली बिल्ली पर दूर से मेरी तिरछी नजर पड़ी। बिल्ली सड़क के कोने में भयभीत होकर चुपचाप खड़ी थी और जैसे ही हम लोग वहाॅं पहुॅंचने ही वाले थे,बिल्ली एक ही दम में रोड के इस पार से उस पार हो गई। मैंने अपनी गाड़ी की गति धीमी की जैसे कि गाड़ी अगर आगे बढ़ कर उस रेखा को छू भी ली तो मैं ही सबसे पहले जानबूझकर कोई अंजान खतरा मोल लेने का कसूरवार बनूंगा,लेकिन मुझसे पहले ही मेरी बाईं और दाईं ओर की गाड़ी पावर ब्रेक लगा कर चिचियाते टायर की आवाज के साथ एक झटके में ही रुक गई और आगे की साईकिल वाले सज्जन सामने में खुली ऑंखों से इस अप्रत्याशित स्थिति को देखकर अचानक अपनी साईकिल को एकबारगी रोकने में अपना संतुलन भी खो दिया। अब सबों को बेसब्री से इंतजार था कि इस संकट को दूर करने के लिए कोई संकटमोचक वीर पुरुष हमलोगों की दिशा से ही आए और इस लक्ष्मण रेखा को भेद कर आगे जाने का रास्ता बनाये। कुछ क्षण के बाद मुझे लगा, लोग क्या समझेंगे कि कितना अंधविश्वास को मानता हूॅं,जबकि इस समय मेरे सभी पास वाले ऐसी सोच के ही अनुयायी थे। मन में उपजे तत्काल लज्जाभाव के कारण मैंने अपनी बाईक को स्टार्ट किया और जैसे ही गाड़ी को आगे बढ़ाने ही वाला था कि तब तक पीछे से तेज गति से एक गाड़ी आई और उस लक्ष्मण देखा को रौंदते हुए आगे बढ़ गई और जब तक मैं अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए संभल पाता, मेरे आजू-बाजू वाली गाड़ी के जांबाज चालक अपने को अब पूर्ण सुरक्षित मानकर मुझसे पहले ही तीव्र गति से आगे निकल गये।
इस तरह की बातें सिर्फ पैदल,साईकिल और बाईक वालों के साथ ही नहीं होती,बल्कि हाई-वे पर भी बेधड़क चलने वाली बड़ी बड़ी गाड़ियों में इसी कारण से अनायास ही ब्रेक लगते हुए देखता हूॅं। मुझे आश्चर्य होता है कि इस तरह की तथाकथित मारक और खतरनाक परिस्थितियों के बारे में जब कभी भी लोगों से बात करो तो लोग कहते हैं कि ये अंधविश्वास है। अब इसे कौन मानता है। हमें आधुनिक सोच रखनी चाहिए। यह तो समाज में चल रही पुरानी घिसी-पिटी मान्यता है। यह विचार सिर्फ सुनने के लिए ही है,क्योंकि जब भी सड़क पर चलता हूॅं तो इस तरह की स्थिति आते ही गिरते पड़ते लोगों को रुकते हुए देखता हूॅं। फिर ये कौन लोग हैं ? किसी दूसरे ग्रह से तो आये हुए नहीं लगते। इसी तथाकथित आधुनिक समाज से ही तो हैं। किसी आवश्यक कार्य के कारण जल्दबाजी में रहने के बाद भी लोग क्यों पिछली गाड़ी के इंतजार में खड़े हो जाते। लोगों को क्यों लगता है कि बिल्ली द्वारा रास्ता काट देने के बाद उसे पार करने पर किसी न किसी खतरे या अनहोनी को निश्चित रुप से निमंत्रण देना है। आधुनिक हो रहे मनुष्य के इस भय को अब बिल्ली भी अच्छे से ताड़ गई है और कभी-कभी बिल्ली भयभीत ढ़कोसलेबाज मनुष्यों के संग मजाक भी कर लेती है। वह सड़क के कोने में सड़क पर भयमुक्त होकर चलने वाले किसी आधुनिक सोच वाले आगंतुक के शिकार में अन्यमनस्क ढ़ंग से खड़ी रहती है। बिल्ली पर नजर पड़ते ही गाड़ी की चाल धीमी होने का उपक्रम प्रारंभ हो जाता है और लोग सोचते हैं कि बिल्ली के इधर से उधर होने से पहले ही निकल लो, लेकिन जैसे ही गाड़ी के आगे बढ़ने का आभास बिल्ली को होता है,बिल्ली बिजली की गति से सड़क के इस पार से उस पार एक ही दम में इस घमंड से हो जाती है कि अब जिसको हिम्मत है,वो जाकर दिखाओ।
आखिर इस तरह की मानसिकता क्यों घर कर गई है और कहाॅं से इसका उद्भव हुआ है ? इस तरह के विचार को सीधे तौर पर अंधविश्वास मान लें या इसके पीछे जो अनगिनत तर्क हैं उसे मानें। निश्चित ही एक किंकर्त्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति हो जाती है। घर से ऐसे पुरातन अंधविश्वास वाले ख्याल को झटक कर निकलने के पश्चात भी बाहर में ऐसी परिस्थिति का सामना होते ही पलक झपकते ही स्वत:स्फूर्त आधुनिक सोच की हवा निकल जाती है। संयोगवश, मैंने कई बार अंजाने में या लोकलज्जा भाव से या फिर देर तक किसी संकटमोचक के नहीं आने पर बिल्ली द्वारा खींची गई रेखा को पार किया है। कुछ भी तो कभी असामान्य होते नहीं देखा या कहीं कोई विघटन भी तो नहीं हुआ,पर मन में अन्दर ही अन्दर किसी अनहोनी की आशंका थी। सड़क पर सहसा ऐसी स्थिति आने पर आप क्या करते हो ?