बिलों के बिल में मजदूर-किसान!!
सरकार बिल लेकर आई है,
एक बिल में किसान,
एक बिल में मजदूर भाई है,
दोनों ही संतुष्ट नहीं,
लेकिन सरकार अडिग है,
इस बिल की नितांत जरुरत है,
इससे देश आत्मनिर्भर बनेगा,
मजदूर और किसान,
दोनों ही खुशहाल रहेगा।
माननीयों की है निगहबानी,
बिल लाकर की मेहरबानी,
मजदूर-किसान को लग रहा,
उसकी मेहनत पर फिर गया पानी।
मजदूर मांग रहा था न्यूनतम मजदूरी,
किसान की मांग थी, निर्धारित दाम पर हो खरीदी,
मजदूर की चाहत है,हर हाथ को काम मिले,
किसान की चाहत है,हर फसल का उचित दाम मिले,
मजदूर को चाहिए थी,ऐसी कानूनी सुरक्षा,
किसान को चाहिए, फसलों की हो अभिरक्षा।
मजदूर मांग रहा था, शोषण से मुक्ति,
किसान चाह रहा था, खेती के लिए अनुकूल वातावरण सुरक्षित,
माननीयों ने ऐसा मार्ग अपनाया,
मजदूरों से अधिक, मिल मालिकों को शक्तिशाली बनाया,
इधर किसानों को भी चाहिए थी मजबूती,
निर्धारित दाम पर फसलों की खरीद होती।
लेकिन सरकार ऐसा बिल लेकर आई,
जहां मजदूर की शीघ्र नहीं होगी सुनवाई,
और किसान की भी ना हो सकेगी कमाई,
एक को मिल रहा है, मिल मालिकों का नियंत्रण,
एक को मिल रहा,दूर देश में बिक्री का निमंत्रण,
मजदूर परेशान हैं, सरकार की मिल मालिकों को मिली रहमत से,
किसान हैरान हैं, बड़े बड़े खरीदारों को मिल रही राहत से,
श्रीमान ने वह दिया, जो नहीं मांगा था,
माननीयों ने वह दिया, जो चाहा नहीं था,
मजदूर काम की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हैं,
किसान फसलों का उचित दाम मिले, इसके लिए सड़क पर है।
हजरतों ने वह कर दिखाया,
जो अपेक्षित नहीं है,
ऐसे बिल लेकर आए,
जिसे स्वीकारना ही बेबसी है,
मजदूर और किसान, बेचैन है,
सरकार के लाए बिलों के बिल में है।