बिलमै
परदेस थारी चाकरी, असल सुख नै छिनै ह,
दादा सा रै हाथ री चाय ने मनडो बिलमै ह।
चाय तो अठै भी मिल जावै ह, पण वो मनुवार कठै,
सुता नै उठा’र चाय पावै, वो दादासा रो दुलार कठै।।
चाय बणावण री रीत तो वा ही पुराणी ह,
दुध, चाय पत्ती अर सक्कर री कहाणी ह ।
पण इण रै साथै आपणा नै बतळावण रो,
घर रा बढैरा री चाव आज भी जुबानी ह।।
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.- बनेड़ा (राजपुर) भीलवाड़ा राजस्थान