बिलखती है स्त्री
बिलखती स्त्री
बिलखती है स्त्री ,
रोती है स्त्री ।
जब शासक हीं शोषक हो ,
रक्षक हीं भक्षक हो ,
तो बिलखती है स्त्री ।
न स्नेह हो , न संवेदना हो ,
न प्रणय हो , न प्रेरणा हो ।
तो रोती है स्त्री ।
न आदर हो , न विश्वास हो
न संयम हो , न सम्मान हो
तब रोती है स्त्री ।
जब आशिफा की रुदन हो ,
निर्भया की क्रन्दन हो ,
तब रोती है स्त्री ।
ट्विंकल की वेदना हो ,
उन्नाव की दुर्घटना हो ,
तब रोती है स्त्री ।
✍️समीर कुमार “कन्हैया”