बिरह गीत
—–गीत—-
जल न जाएँ – दिये की तरह हम,
मेरे साजन तू —जल्दी से आजा
देखती हूँ तेरी राह निशदिन
सूना मन का है आँगन तू आजा
(1)
दीप हाथों पे रखकर के दरदर
ढूँढ़ती हूँ तुम्हे बावरी बन
एक पल भी लगे दिल न तुम बिन
राह तकते हुईं अँखियाँ पाहन
है बहुत तेज़ आँधी बिरह की
है ये बेचैन तन मन तू आजा
(2)
झूलती हैं सखी रात दिन सब
अपने साजन के बाँहों में झूला
एक मैं हूँ अभागन कि जिसको
मेरा निर्मोही बालम है भूला
कह रहीं गेसुओं की घटाएँ
बीत जाए न सावन तू आजा
(3)
सर्द रातों में ज्वाला धधकती
और भरती हूँ मैं ठण्डी आँहें
आँख से गंग धारा है बहती
धड़कनें दिल की मेरी कराहें
मेरे प्रीतम बिसारो न मुझको
रोके कहती है बिरहन तू आजा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)